एक रूपी वैज्ञानिक मेरलोव ने मनुष्य जीवन
की स्थितियों का वर्णन अपने शोध में किया है| सबसे पहले मनुष्य अपनी रोजी रोटी की
चिन्ता करता है| इसके बाद सुरक्षा ,समाज में स्थान तथा इसी क्रम में आखिर में यह
महान कहलाना चाहता है| हर एक के मन में यह अभिलाषा होती है कि दुनिय उसे महान समझे जब तक यह इच्छा
जाग्रत होती है तो उस समय तक बबुत देर हो चुकी होती है क्योंकि तब तक मनुष्य
वानप्रस्थ आश्रम मे प्रवेश कर चूका होता है| यदि यह अटल सत्य है की मनुष्य यह
इच्छा जरुर रखता है तो हमे उन बातो को जल्दी से जल्दी सीख लेना चाहिए |जिनसे
निरापद रहने के बाद ही महानता का अनुभव हो सकता है| इसके बारे मे तुलसी दास ने
लिखा है कि यहाँ पर मूल पाठ लिखे – मनुष्य को मान , दंभ , हिंसा , सेवा का अभाव
,अपवित्रता , अस्थिरता , इन्द्रिय विषयों में आसक्ति , इत्यादि को अपने अन्दर से
दूर करना चाहिए|
मनुष्य पूर्व जन्म के संस्कारों को लेकर
पैदा होता है| ये संस्कार उसके पैदायशी आदतों के रूप मे दिखाई देते हैं| परन्तु
हमें अपने उद्देश्य के मुताविक एन पूर्व जन्म की गलत आदतों को छोड़कर अपना विकास इस
प्रकार करना चाहिए कि हमारा अन्त:करण शान्त हो जाए तथा हमारी महान बनने की इच्छा
की पूर्ति हो जाए| अक्सर लोग साठ वर्ष की आयु के आयु के बहुत संतुष्ट दिखाई देते
है या फिर उनमे बहुत अशांति दिखाई देती है| जिन लोगो ने अपनी कर्म की आयु मे
उपरोक्त बातों का ध्यान रखा है वे खुश तथा जिन्होंने उपरोक्त बातों का ध्यान नही
रखा है वे अशान्त| अशांत व्यक्ति अशान्ति लेकर दुसरे जन्म में जाता है और पैदा होते
ही वह अशान्त देखने लगता है| इसी लिए हमें
सोचना चाहिए की बड़े भाग्य से यह जीवन मिला है जब जब हम पैसे की छोटी –छोटी बचत कर
सकते है फिजूल खर्ची रोक सकते है तो क्यों न हम अपनी गलत आदतों को भी फिजूल खर्ची
की तरह त्याग कर अपना परलोक सुधार लें |
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