गुरुवार, मई 21, 2015

जीवन और परिवर्तन


 संसार में एक परिवर्तन के अतिरिक्त जो भी दिखाई देता है सत्य मिध्या और असत्य ही है| संसार की सभी वस्तुएं परिवर्तन की दौर से गुजर कर बदल जाती हैं| असत्य होते हुए भी परिवर्तन शास्वत है , अत: यही सत्य है | जीवन भी परिवर्तन का रूप है| बचपन उस बसंत के समान है जिसके आते ही अनेक बन-उपबन अनेक अनेक रंगो से वन और उपवन को विकसित करता है| इन पुष्पों से वातावरण में प्रसन्नता रूपी सुगन्ध विकीर्ण हो जाती है|  वातावरण है आनन्द ही आनन्द दिखाई देता है शाखाएं पुष्पों से भरी होने के लिए फुकी रहती है| उन पुष्पों पर चारों और से प्रेम दुलार रूपी भौंरे गुंजार करते है| अत: बचपन की कोमलता-सुकुमारता कितनी सुंदर और संतुष्टि देने वाली है यही परिवर्तन जब उस बचपन को युवावस्था में परिवर्तन करता है ,उस समय जीवन बड़ा ही आकर्षक ,तेजस्वी ,दिखाई देता है| प्रात: कालीन की सुनहरी आभा मध्याह्म चमकने सूर्य के समान है जों अपने तेज से आसमान के आने वाले संकटों को दूर कर देता है यह अवस्था उस वर्षा ऋतु की नदियों के समान है| जिसमे एक उन्माद ,अहंकार और अपने आसपास के दोनों किनारों को काटते हुए चलना स्वाभाविक है |
 प्रात: कालीन निकली वही किरणें जब सायंकालीन कालिमा जीवन में विखेरने लगती है अर्थात वृद्धावस्था आती है| तब मन कुछ और जाग्रत होता है| यह क्या वही यौवन का शरीर अब भार हो गया है ? जिस जीवन की शाखाएं पुष्पित पल्लिवत होकर सुन्दरता विखेरती थी| और शाखाएं बोझ से लदी थीं ,वही आज पुष्प पल्लव से हिन् दिखाई दे रही है| वही मधुर वाणी ,जो कल तक भौंरो के रूप में गुंजार करती थी ,वही आज कांपती प्रतीत होती है| जिस शरीर की उपमाएं देकर कवि काव्य की रचनाएँ करते हैं वही चिकने केश सर्प के केंचुल के समान हो गए , आखें गहरी झील के समान किसी खुली हुई सीपी के समान दिखाई देती हैं| सच तो यह है कि परिवर्तन शाश्वत है उसमें चलने वाले की रूप-रंग आकृति बदलती है |

परिवर्तन निष्ठुर है ,वह हमेशा ही अपनी लीला के आधार चलता है| यह सत्य है कि संसार मिथ्या है| नश्वर और क्षणिक है| उस क्षणिक स्थल को पर्यटक द्वारा अपना स्थान न मानकर अपने को पहचानने का प्रयास करना साथर्क जीवन की कला है |

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