विनम्रता
एंव
शिष्टाचार
अंत:करण
की
अभिव्यक्ति
है
शिष्टाचार
सुसंस्कृत
व्यक्तित्व
का
परिचायक
है
| शिष्टाचार
का
मूलमंत्र
है
– अपनी
नम्रता
और
दूसरों
का
सम्मान
|
इस भाव
का
धनी
व्यक्ति
ही
सभ्य
और
सुसंस्कारी
माना
जाता
है|
शिष्टाचार
सर्वत्र
सम्मानित
होता
है
और
अनायास
ही
अपने
विश्वास
एंव
विनम्र
व्यक्तित्व
की
छाप
दूसरों
पर
छोड़ता
है|
विनम्रता
मनुष्य
का
सर्वोपरि
अलंकार
है
/बड़ों
का
आशीर्वाद
एंव
श्रद्धा
सम्मान
मनुष्य
की
आयु
, विद्दा
,यश
एंव
बल
की
अभिवृद्धि
करता
है|
छोटों
के
प्रति
स्नेहहिल
स्वर
में
शुभाशीष
और
बराबर
बालों
का
प्रेम
पूर्ण
अभिवादन
,शिष्टाचार
के
सही
मूल
मन्त्र
हैं|
जीवन
का
विकास
क्रम
,उन्नति
– अवनति
, मान
– अपमान
,का
बहुत
कुछ
आधार
व्यक्ति
की
शिष्टता
एंव
शालीनता
पर
निर्भर
कर्ता
है|
उदंड
, उश्रखल
, अशिष्ट
व्यक्ति
व्यवहार
से
वैयक्तिक
एंव
सामाजिक
दोनों
के
ही
विकास
के
मार्ग
अवरुद्ध
होते
हैं
| इसके
विपरीत
जो
सभ्य
, शिष्ट
, उदात
होते
हैं
व्यावहारिक
कला
मे दक्ष होता
हैं
|
व्यक्तिगत
जीवन
या
समाजगत
जीवन
प्रत्येक
क्षेत्र
में
प्रगति
स्थिरता
एंव
सुखशांति
,परस्पर
स्नेह
, सदभाव
के
आधार
पर
ही
अवलम्वित
है
| अत:
इस
तथ्य
के
मर्मज्ञ
, मनीषी
एंव
विद्वानों
की
मान्यता
है
कि
व्यवहार
सदैव
विनम्र
एंव
शालीन
होना
चाहिए|
चारों
ओर
मधुरता
,सादगी
, सज्जगता
का
वातावरण
, उत्पन्न
करना
चाहिए
दूसरों
के
लिए
वैसा
व्यवहार
न
करें
,जैसा
हम
अपने
लिए
नहीं
चाहिए
/ इसी
तथ्य
को
शिष्टाचार
, सभ्यता
एंव
नागरिकता
के
नाम
से
जाना
जाता
है
| जिसमें
यह
भावना
जितनी
अधिक
होगी
,वह
उतना
ही
शिष्ट
,सभ्य
ओए
शालीन
माना
जाएगा
/ जीवन
विद्या
का
धनी
व्यक्ति
विनम्र
होता
है
| विद्या
को
जहाँ
विनम्रता
की
जननी
माना
जाता
है
वहीं
विनम्रता
को
व्यक्ति
संवारने
वाली
सहयोगिनी
कहा
गया
है
| विनय
से
मिलकर
व्यक्तित्व
मूल्यवान
हो
जाता
है
|
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