गुरुवार, मई 21, 2015

संजीवन है प्रेम


प्रेम को जब हम आत्मा की चेतना मे आत्म सात करतें है तब हमें जीवन की वास्तविकता का बोध होता है| शाथ मे समस्त साँसारिकता बौनी प्रगति होती है जब हम जीवन में सभी ओर से निराश हो जाते हैं तब हमें जो आशा की किरण दिखाई देती है ,वह प्रेम ही है चाहे वह परमात्मा के प्रति हो या इसी आत्मीय जन के प्रति ,संजीवनी है प्रेम| परमात्मा को पाने के लिए जितनी भी उपलव्धियां और संसाधन हैं वे कोई भी काम आने वाले नहीं हैं| केवल प्रेम का ही एक मार्ग है जो हमें परमात्मा तक ले जाता है| मानव की प्रकृति प्रेम निमग्न है किन्तु वह स्वार्थ वश अपनी प्रकृति खो देता है| परमात्मा के प्रति प्रेम में जब समर्पण जुड़ जाता है तो उसे भक्ति कहते है| जहाँ प्रेम या आत्मीयता होती है वहाँ बहुत सी अनचाही बातों को भी नजरअंदाज कर दिया जा सकता है| प्रेम प्रत्येक प्राणी मात्र की भूख है| आज आधुनिकता की अन्धी दौड़ में जहाँ व्यक्ति जीवन की सभी व्यावहारिक वस्तुओं से सम्पन्न है वहीं वह प्रेम से विपन्न है |
स्वार्थ व् महत्वाकांक्षाओं को लोग प्रतिस्पर्धा की तरह अपने जीवन मे जोड़ रहे है| प्रेम के मार्ग में यह सब बाधक है| मानव के ह्दय में प्रेम का स्त्रोत है क्योकि वह ईश्वर का ही  अंश है किन्तु वह संसार आकर भौतिकता के द्वारा जकड़ा जाता है| जिससे तमाम विकृतियों और विकारों के साथ अनेक समस्याओं के जंजाल मे फंस जाता है| तब एक मात्र उपाय प्रेम ही रह जाता है| प्रभुका स्वरूप है प्रेम ,उसका सम्बन्ध ह्रदय से है भक्तो के जीवन की आदार है प्रेम| सच्चा प्रेम अन्तस् की वाणी समझने मे सर्वथा समर्थ है मौन रह कर भी प्रेम की अभिव्यक्ति की जा सकती है| जब हम र्भु के प्रेम मे निमग्न हो जाते है तब हमारा सारा ज्ञान कला जाता है| यह गुण सहित कामना रहित , इच्छा रहित ,सूक्ष्म से सूक्ष्म अनुभव का रूप है| प्रेम परम आनन्दमय है| प्रेमी सर्वत्र आनन्द ही आनन्द का अनुभव करता है| प्रेम समाज मे आत्मीयता का विस्तार कर्ता है| प्रेम का प्रभाव ह्दय को प्रभावित करता है |

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