आस्था का दिव्य भाव सत्य का पर्याय है|यह ऐसा नैतिक प्रत्यय है जो स्रष्टि के
साथ एकत्व की प्रेरणा देती है ,स्रष्टि को अखंडता का बोध करता है आस्था मानव की
स्वाभविक प्रवृति है| इसका सम्बन्ध
नैतिकता से है| परिवर्तन का भाव अन्दर से आता है जो आस्था
परक भाव बोध से हीं संभव है| कर्म
का सम्बन्ध धर्म से है और धर्म का सम्बन्ध स्रष्टि से ,मात्र एक क्षेत्र ,प्रान्त
या देश से ही नहीं है| मानवता का सरंक्षण
आस्था के बक्त पर सभंव है अनास्था द्वारा नहीं| आस्था
बोध से मानवीय अन्तश्चेतना में गुणात्मक परिवर्तन आता है उसके फल स्वरूप ह्रदय मे
उदारता ,करुणा ,प्रेम ,श्रद्धा के दिव्य भाव जन्म लेते हैं| मन
,मस्तिष्क ,बुद्धि मे शक्ति ,एकाग्रता ,प्रसन्नता अवतरित होती है|
आस्था का सम्बन्ध मात्र चरित्र से नहीं
,आचरण और व्यवहार से भी है| आस्था
बोध ही मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग करता है| आस्था
बोध कोई नवीन भाव नहीं है| किन्तु
आस्था बाद में अवश्य कुछ नवीनता है| आस्था
एक सकारात्मक प्रयाए जो सत्याग्रह की तरह देश के लिए नैतिक उपलब्धियों का वरदान
प्राप्त करने के लिए है| आस्था सदभाव और
सद्विचार है| आस्थावादी वैचारिक उन्मेष इस समय सबसे बड़ा
सकारात्मक माध्यम है| अनास्था परक
मानसिकता से हम ग्रस्त हैं| अति
भौतिकता वादी सोच ,यांत्रिकता के बढ़ते प्रभाव और व्यवसायी करण चिन्तन से आस्था आहत
होती है| अनास्था से अस्तित्व का खण्डित हो जाता
है| इससे स्वस्थ मान्यताएं और व्यक्तित्व का
खण्डित होना स्वाभाविक है| आस्था
का पंथ द्रढ़ता ,निष्ठा ,साहस और निर्भयता के साथ ही कठिनाई और संघर्ष का भी है|
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