गुरुवार, मई 21, 2015

परम लक्ष्य


स्रष्टि के आरम्भ मे परमेश्वर ने सभी जीवों को कर्म फल ,आयु और भोग के लिए उत्पन्न किया है| इनमें केवल मनुष्य ही ऐसा जीव है जिसे उसने ज्ञान भी दिया| वैद व्यास ने कहा है –कि मनुष्य जीवन से श्रेष्ठ कुछ भी नही है| मनुष्य से भिन्न सभी जीव – जंतु घोर अज्ञात और अन्धकार से घिरे है| वह चाहकर भी अज्ञात रूपी अन्धकार से ज्ञान रूपी प्रकाश तक नहीं पहुँच सकते| मनुष्यों मे भी कुछ अज्ञात के वश में होकर स्वार्थ सिद्धि व् कामवासनाओं में लिप्त होने के कारण जीवन के वास्तविक मार्ग से भटक जाते हैं| यह सौभाग्य केवल मनुष्य को मिला है की च सांसारिक भोगों का सुख लेते हुए भी अपने वास्तविक रूप को पहचान कर आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है| मनुष्य पर ईश्वर ने विशेष कृपा के उसे ज्ञानार्जन करने ,आत्मा चिन्तन ,साधना ,व् तपस्या करने की शक्ति प्रदान  की है| इन शक्तियों द्वारा वह अपना वौद्धिक व् आत्मिक विकास कर के आध्यात्मिक मार्ग पर चल सकता है| यह आवश्यक नहीं कि हम सन्यास मार्ग पर चल सकता है यह आवश्यक नही की हम सन्यास मार पर चल पड़ें| गृहस्थ जीवन मे रहते हुए ही इसके लिए हमें सत्य के अनुसार उतम आचरण करते हुए धर्मानुसार धन सम्पति अर्जित करनी होगी| इच्छाओ की पूर्ति करते हुए तथा भोगो का सुख लेते  हुए भी इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है ,परन्तु इसके लिए त्याग पूर्वक ससांर के पदार्थो का भोग करना चाहिए| क्योकिं परमेश्वर द्वारा इन भोग्य पदार्थों को बनाकर स्वंय तो इन्हें त्याग दिया गया,लेकिन हमें प्रसाद स्वरूप भोगने के लिए कहा गया है| ईश्वर की प्राप्ति ज्ञान ,भक्ति और कर्म के मार्ग द्वारा की जा सकती है ,इनमे भक्ति मार्ग का विशेष स्थान है| ऋग्वेद के अनुसार – हे –परमेश्वर| में इन पाप कर्मों को कैसे जानूँ जिनके कारण सवर्था बंधन हित होकर मै आपको प्राप्त होऊं| ईश्वर कृपा से पाप बन्धनों से मुक्त होकर अष्टांग योग के मार्ग पर चलते हुए हम परमात्मा आश्रय में आनन्द की प्राप्ति कर सकते हैं| यही मानव जीवन का एक लक्ष्य अर्थात मोक्ष है |


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