यथार्थ में ज्यादातर दुःख मनघडन्त और काल्पनिक होती है| जो व्यक्ति इस सच्चाई को जान लेता है कि
मै वस्तुतः चेतना स्वरूप हूँ और पदार्थों के साथ मेरा सम्बन्ध दिखावा मात्र है , वह
कभी दुखी नहीं होता| वह लाभ हानि जैसी
परस्पर विरोधी परिस्थितियों में सम रहता है| अत:
दुःख सुख से ऊपर उठने का एक मात्र उपाय स्वमं को जानना है| जब व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप से अवगत
हो जाता है| राग-व्देष से उपर उठकर समता में स्थित हो
जाता है| तो वह भौतिक जगत की वस्तुओं से निस्पृह हो
जाता है| चित्र की शुद्धता और शुद्ध धर्म का पालन
इसमें सहायक होता है| यह ध्यान परिवर्तन
का ही एक रूप होता है| जब ध्यान किसी सुखद
स्मृति या कल्पना पर केन्द्रित हो जाता है तो इस परिवर्तन मानसिक अवस्था में जो
सुख या आनन्द की अनुभूति होती है वह स्वास्थ्य प्रद होती है| ऐसी अवस्था में हमारे शरीर में लाभदायक
रसायनों का उत्सर्जन प्रारम्भ हो जाता है जो हमारे उतम स्वास्थ्य व् रोग मुक्ति के
लिए अनिवार्य है|
ध्यान को विगत की
सुखद घटनाओं के अलावा किसी सुखद कल्पना पर भी लगाया जा सकता है यह ध्यान का
सर्वोतम रूपांतरण है ,जो न केवल वर्तमान समस्या से मुक्ति दिलाता है बल्कि हमारी
कल्पना को वास्तविकता मे परिवर्तित कर समस्याओं और चिन्ताओं से निकलने का अच्छा
मार्ग है| ध्यान को अन्यत्र कहाँ लगाया जाये ,य भी
कम महत्व पूर्ण नहीं /सुख की कल्पना सुखी जीवन दुःख की कल्पना दुःखी जीवन| धीरे धीरे वही कल्पना लोक वास्तविकता मे परिवर्तित
होकर हमारा स्थायी सुख या दुःख बन जाता है|
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